वो मेरा बचपन लौटा दे कोई

           
 वो मेरा बचपन लौटा दे कोई


वो मेरा बचपन लौटा दे कोई
वो अम्मा की कहानी सुना दे कोई
गिरते –परते चलाना सिखा दे कोई
रो रहा हूँ, ढूध के दांत जमा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |


याद है वो पल जब मै गिरता था
हाथों पे चलता था
टॉफी के लालच में सबकी गोंद में जाता था
सब कोई अपना-सा दिखता था
क्या होता पराया,ऐसा कोई न होता था


वो बाबा के कन्धे पे बैठा दे कोई
नदी किनारे वो चिड़िया दिखा दे कोई
कोयल की कूक सुना दे कोई
नन्ही-सी तितली पकड़ना सिखा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |

  
वो नकली द्वार पे सोना ,
फिर बाबा की पीठ पे घर को आना,
आते ही उठ कर बैठ जाना
वो दादी के हाथों से खाना
वो माँ के पीछे-पीछे चलना
वो पापा के साथ कुश्ती लड़ना,
और जीतने की ,
वो ख़ुशी लौटा दे कोई
वो मेढ़क पकड़ के कुए में डालना सीखा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई | 



वो बाबा के कंधे पर बैठा के ,
मेला-ठेला घूमा दे कोई
काश! वो मेलों के झूले झूला दे कोई
वो खिलौने ,वो मशीन-गन दिला दे कोई
वो चोट पे माँ की फुकन लगा दे कोई
वो माँ के हाथों की बनी आटे की ,
चिरैया खिला दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |
               
                -गौरव सिंह “रघुवंशी”


TO THE MEMORY OF DR. SAHAB

 my mother   

                                                                                        -A P J ABDUL KALAM

KALAM JI WITH PARENTS
Sea waves,golden sand,pilgrims' faith,
Rameswaram mosque street ,all merge into one,
My mother!
You come to me like heaven's caring arms.
I remember the war days when life was challenge and toil-
Miles to walk,hours before sunrise,
Walking to take lessons from the saintly teacher near temple.
Again miles to the Arab teaching school,
Climbs sandy hills to railway station road ,
Collect,distribute newspaper to temple city citizens,
Few hours after sunrise ,going to school.
Evening ,business time before study at night .
All this pain of young boy.
My mother you transformed into pious strength
With kneeling and browsing five times
For the grace of all mighty only,my mother.
Your strong piety is your children's strength,
You always shared your best with whoever neede the most,
You always gave ,and gave with faith in him.
I still remember the day when i was ten,
Sleeping on your lap to the envy of my elder brothers and sisters 
It was full moon night ,my world only you knew 
Mother! My Mother!
When at mid night i woke with tears falling on my knee
You knew the pain of your child ,my mother.
Your caring hands ,tenderly removing the pain
Your love,your care,your faith gave me strength
To the face the world without fear and his strength.
We will meet again on the great judgement day,my mother!



    

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मेरी कविता , "मेरी दुनिया "

                                         मेरी दुनिया 

कभी  तो साथ चलो मेरे ,अपनी दुनिया दिखा दू तुम्हें । 
अपनी कहानी किसी बिराने में सुना दू  तुम्हें। 
कही आँखों से  छलकाना न आँशु ,ज़ख्मो के निशान देख कर। 
हमारी नम पलकों को भिगोना नही  दुनिया को इल्ज़ाम दे कर। 


                        हम खुद थे मांझी  अपनी  कश्ती के ,चल दिए थे तूफ़ान  में। 
                        क़िस्मत पे  यकीन इतना था की रोक न सके खुद की जिस्म को जान  में। 

ना पता था होगी इतनी बेवफ़ा वो लहर 
फेर लाते कश्ती अपनी, उस समंदर की मँझधार से। 
मेरे आँशु भी घुल गए समंदर के खारे स्वाद में।  
जा  बसी  मेरी कश्ती उस साहिल की माँद में। 
   
                                           आए ना याद किसीको हमारी यही सोचते है। 
                                            बंद आँखों से ,आज  भी दुनिया  देखते है। 
                       


                                                          -GAURAV  Y SINGH

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विरासत :जो लोगो से मिला , मेरी कविता

                                       विरासत: जो लोगो से मिला 
जब सितारे गर्दिश में थे ,नागवारा किया लोगो ने।
 टूटे दिल से जो अल्फ़ाज़ निकले उस पे सवाला किया लोगो ने।
 न पता रंजिश थी कैसी ,हर मोड़ पे आजमाया लोगो ने। 
 देख न सका जौहर कोई, हर बार सितम किया लोगो ने। 

           
            हँसते हँसते दगा  देना सीखा दिया लोगो ने मुझे।
            खिले हुए फूल को मुरझाना सीखा दिया लोगो ने  मुझे। 
            समन्दर को चिंगारी से जलना सीखा दिया लोगो ने मुझे। 
            कच्ची मिट्टी का घड़ा था टेढ़ा पका दिया लोगो ने मुझे  ।


अपनी गुड़िया को मार कर मुस्कुराना सीखा दिया लोगो ने मुझे। 
क्यों इल्ज़ाम दू खुद को बर्बादी का आँसू बहाना सीखा दिया लोगो ने मुझे। 
किसी की जान ले कर अपनी जान बचाना सीखा दिया लोगो ने मुझे। 
किसी हँसते हुए को रुलाना सीखा दिया लोगो ने मुझे। 


         अफसोश किसी पराये के लिए जान देना नही सिखाया लोगो ने मुझे।
         विष पीकर अमृत पिलाना नहीं सिखाया लोगो ने मुझे। 
         ऐ  खुदा ,माफ़ करना पर माफ़ी मांगना नहीं सिखाया लोगो ने मुझे। 


                                                               -GAURAV  Y SINGH
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Yaad ...missing someone

                                                   बेवफाई 



क्यों इल्जाम दे उन्हें बेवफाई का ,
होगी  कुछ मजबूरियां उनकी भी 
वरना वफ़ा तो औरो से भी किया करते थे।
आज कुछ यू मुस्कुरा के चल दिए 
वरना ,  
मोहब्बत तो गौरव से  ही किया करते थे। 

         
क्यों इल्जाम दे उन्हें बेवफाई का ,
होंगी कुछ मजबूरियां उनकी भी 
वरना इतने बुरे हम भी नहीं थे। 
बस उन्हें आवारगी का शौक था 
और हमें आशिकी का। 


क्यों इल्जाम दे उन्हें बेवफाई का ,
खता तो हम भी किया करते थे। 
आज ढूढ़ते फिर रहे है उन्हें  कहा- कहा
कभी तो वो नजरो के सामने मिल  जाते थे 
यहाँ वहाँ। 


                                                                   -Gaurav y singh

"TERI YAAD" ONE OF MEMORABLE POETRY OF MY LIFE....

                                                 तेरी याद 


 ये बहतीं फिजाएँ झोंक देती है तुम्हारी तरफ 
ये लड़खड़ाते कदम चल पड़ते है तुम्हारे  तरफ 
न जाने कैसी ये याद है खींच लाती है तुम्हारी तरफ। 

                          सारा ग़म भूल  जाता है महखाने में 
                          तेरा नूरानी चेहरा नजर आता है महखाने में 
                          यू जमाना शराबी ना  कहे मुझे ,
                           तेरी काशिश नजर आती है मेरी आँखों में।

नजरें झुका के चलू तो बेवफा बताते है लोग मुझे 
हर गली ,मोड़ पे पागल समझ मुस्कराते है लोग मुझे। 
कहीं कब्र से न उठा दू तुझे  ,महखाने को ही कब्रगाह बताते है 
लोग मुझे।  


                                     

                                                         - GAURAV Y SINGH



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my poetry on bird "wo nanhi si chidiya"

                                        वो नन्हीं सी चिड़ियाँ                                                                               

 आज देखा मैंने चिड़िया को घोंसला बनाते 
पतली पटरी पे घास बिछाते। 

खो गई है वो खुशी पेड़ की ,फिर भी 
देखा आशिया सजाते। 

जो मजा नीम,आम की डाली पे,वो मेरे घर में कहा
जो मजा सूखी घास में ,वो हरी घास में कहा। 

आज फिर देखा मैंने चिड़िया को आँशू बहाते 
दूर-दूर से तिनका लाते।


शायद हमी ने उसे  भुला दिया 
 बिल्ड़िंग ,टॉवर लगा दिया। 
  वो बबूल के पेड़  सुला  दिया   
     खुद को पृथ्वी का मालिक बना लिया। 

छोटा  सा हिस्सा  था  उसका 
उसे भी अपनी जागीर बना लिया,
क्या  जबाब  देंगे  खुदा  को, 
   की उस मासुम को हमने ज़हर पिला दिया।

प्यार की भूखी थी वो ,आँगन में आती थी 
  आज हमने उस आँगन को ही तुडवा दिया। 

अफ़सोस,पत्थर के आशिया में
नन्ही सी जान को टकराते देखा। 
 ज़हरीले आसमान में तड़पड़ाते देखा ,
गदबेला को घर में आते देखा। 
उस प्यारी सी चिड़िया को घर बनाते देखा।   

    

                    -GAURAV Y SINGH


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