मेरी दुनिया
कभी तो साथ चलो मेरे ,अपनी दुनिया दिखा दू तुम्हें ।
अपनी कहानी किसी बिराने में सुना दू तुम्हें।
कही आँखों से छलकाना न आँशु ,ज़ख्मो के निशान देख कर।
हमारी नम पलकों को भिगोना नही दुनिया को इल्ज़ाम दे कर।
हम खुद थे मांझी अपनी कश्ती के ,चल दिए थे तूफ़ान में।
क़िस्मत पे यकीन इतना था की रोक न सके खुद की जिस्म को जान में।
ना पता था होगी इतनी बेवफ़ा वो लहर
फेर लाते कश्ती अपनी, उस समंदर की मँझधार से।
मेरे आँशु भी घुल गए समंदर के खारे स्वाद में।
जा बसी मेरी कश्ती उस साहिल की माँद में।
आए ना याद किसीको हमारी यही सोचते है।
बंद आँखों से ,आज भी दुनिया देखते है।