वो मेरा बचपन लौटा दे कोई

           
 वो मेरा बचपन लौटा दे कोई


वो मेरा बचपन लौटा दे कोई
वो अम्मा की कहानी सुना दे कोई
गिरते –परते चलाना सिखा दे कोई
रो रहा हूँ, ढूध के दांत जमा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |


याद है वो पल जब मै गिरता था
हाथों पे चलता था
टॉफी के लालच में सबकी गोंद में जाता था
सब कोई अपना-सा दिखता था
क्या होता पराया,ऐसा कोई न होता था


वो बाबा के कन्धे पे बैठा दे कोई
नदी किनारे वो चिड़िया दिखा दे कोई
कोयल की कूक सुना दे कोई
नन्ही-सी तितली पकड़ना सिखा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |

  
वो नकली द्वार पे सोना ,
फिर बाबा की पीठ पे घर को आना,
आते ही उठ कर बैठ जाना
वो दादी के हाथों से खाना
वो माँ के पीछे-पीछे चलना
वो पापा के साथ कुश्ती लड़ना,
और जीतने की ,
वो ख़ुशी लौटा दे कोई
वो मेढ़क पकड़ के कुए में डालना सीखा दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई | 



वो बाबा के कंधे पर बैठा के ,
मेला-ठेला घूमा दे कोई
काश! वो मेलों के झूले झूला दे कोई
वो खिलौने ,वो मशीन-गन दिला दे कोई
वो चोट पे माँ की फुकन लगा दे कोई
वो माँ के हाथों की बनी आटे की ,
चिरैया खिला दे कोई
वो मेरा बचपन लौटा दे कोई |
               
                -गौरव सिंह “रघुवंशी”