MERI POETRY, WO KAHATI HAI KI...

                                       वो कहती है की . . . 

  वो कहती है की मेरे जिंदगी में गम नहीं है,
  नजदीक  जा कर जब भी देखा है उसकी आँखे नम  है। 

 वो शायद  अपने चेहरे पर  रौशनी चाहती है 
 इसलिए चिलचिलाती धुप में आईना देखती है। 

 वो कहती है बरसात उसे  अब अच्छी  नहीं लगाती  ,ये भिगो देती है। 
 पर  जब भी उसे देखा है बदलो को निहारती है। 

 कल तक जिसे बहती नदियाँ अच्छी लगाती थी 
 आज वो कहती है खारा नहीं होता समंदर का पानी। 

 वो कहती है वो अकेले खुश है 
 उसे किसी का इंतजार नही है 
 फिर क्यू  वो शाम तले चौखट पे आती है 
 शायद उसे किसी पर ऐतबार  आज भी है।



                                                      -GAURAV  Y SINGH


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